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क्या हमने इंसानियत बेच खाई है

जैसे लगता है कि अब कोई भी खबर हमें अचम्भित नहीं करता. और न ही हमारे जीवन में कोई विशेष अर्थ रखता है. तो क्या अब लगता है कि हम तटस्थ भाव से ही अपने जीवन को जीते रहेंगे. क्या अब सामाजिक जीवन की खामियाँ हमारे परिवार, सगे सम्बन्धियों को न छू पायेगी.
ऐसा सोच पाना कहाँ तक उचित है? कहां तक हम इन बातों से मुंह मोरते रहेंगे. क्या इतना भर कह देना कि यह मर्द का, मुस्लमान का, हिन्दू का, दलित का, अगरा का, पिछड़ा का काम है. और बस इस बात से किसी का मुंह बंद कर दिया जायेगा.
नहीं कभी नहीं. यह एक इंसान का काम है जिसने पूरी इंसानियत को शर्मसार किया है. हैवानियत जिसके अंदर आ जाए वो किसी धर्म का कैसे हो सकता है. और कैसे एक आदमी की सजा पूरे धर्म, समाज को दी जायेगी. कैसे एक व्यक्ति मन्दसौर, कठुआ, उन्नाव, दिल्ली को शर्मसार कर सकता है. जो भी व्यक्ति इस तरह का घृणित काम को अंजाम देता है वो हैवानियत का शिकार है. और ये हैवानियत जगह, धर्म, जाति से नहीं आती बल्कि मानसिकता से आती है. इस तरह की मानसिकता कैसे समाप्त हो हमें इसके लिए कुछ करना होगा.
हमें सही से सोचना होगा कि हमारे अंदर, हमारे परिवार में, हमारे समाज में इस तरह की नियत न पैदा हो. उसके लिए निरंतर लड़ते रहने की जरूरत है. ये कोई धर्म, स्कूल, सत्ता प्रतिष्ठान की किताबें नहीं सिखायेगी बल्कि खुद से इसे सिखना होगा. अगर हम ये नहीं कर पाये तो अभी बस ब्लेम कीजिए पर अगली बारी आपके हमारे घर की होगी. अगली बेटी, बहन, बहू, चाची, नानी आपकी और मेरी होगी…
#Divya #MandsaurRape #MP

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